Sunday, February 11, 2007

धुआँ

आज भी जब मै सोचता हुँ कि मै क्या हुँ
तो लगता है कि बस धुआँ हुँ
जो मचलता रहता है पाने को एक आसमान
जो हिचकता रहता है कहने को कुछ अरमान,

क्या क्या नही जला दिया मैनेँ
इस धुआ बन जाने को,

पर मिला क्या
अवशेष भी बिखरे है जाने कहाँ,
लगता है कि बस धुआँ हुँ,
आज भी जब मै सोचता हुँ कि मै क्या हुँ

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