आज भी जब मै सोचता हुँ कि मै क्या हुँ
तो लगता है कि बस धुआँ हुँ
जो मचलता रहता है पाने को एक आसमान
जो हिचकता रहता है कहने को कुछ अरमान,
क्या क्या नही जला दिया मैनेँ
इस धुआ बन जाने को,
पर मिला क्या
अवशेष भी बिखरे है जाने कहाँ,
लगता है कि बस धुआँ हुँ,
आज भी जब मै सोचता हुँ कि मै क्या हुँ
Sunday, February 11, 2007
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